My ThInking- My Attitude
Sunday, 23 April 2017
हम भूल जाते हैं, मानवाधिकार, मानवों के होते है, राक्षसों के नहीं.....कश्मीर, कश्मीरी पंडित और मुसलमान....
Sunday, 16 October 2016
Tuesday, 17 May 2016
साधुत्व.. ईश्वर भक्ति या मजबुरी
साधुत्व.. ईश्वर भक्ति या मजबुरी
बहुत
कम लोग ऐसे है, जो अपनी खुशी से
साधु बने है, या बने रहना
चाहते है, अधिकतर को
परिस्थितियो ने संत बनने को मजबुर किया है, इनके
जख्म दिखाई इसलिए नही देते, क्योकि
इन्हे इसके साथ जीने की आदत पड चुकी
है.
जब भी गंगा के घाटो पर पहुँचता है, मन
करता है, साधु बन जाऊ इन
लोगो की अपनी दुनिया होती है, इनका ना किसी से कोई रिश्ता होता है, ना
किसी से दुश्मनी, ऐसा नहीं है, इनके
परिवार नहीं है, इनमे से अधिकतर के बेटे-बेटिया, बहु, यहाँ
तक की नाती-पोते भी है, वो बात अलग है, कहीं
ना कहीं इनके साधुत्व के लिए भी, इनके अपने ही जिम्मेदार
है,
कुछ गुस्से में बहु-बेटे से किसी वात से गुस्सा
होकर चले आये, कोई ऐसा भी है, जो अपने बेटो के पास जाना चाहता है, लेकिन उनके अपने लाडले उन्हे साथ रखने को तैयार
नहीं है, ऐसा नहीं है, यह यहाँ बहुत खुश है, या यहाँ
इन्हे बहुत सारी सुविधाये मिलती है, या फिर इनकी आदत हो गई है,ऐसे रहने की, अगर आप इनसे पुछो तो यह यही कहते हैं, हम यहां बहुत खुश है, माँ
गंगा की शरण में है, इससे अच्छा और क्या हो सकता है, फिर भी
अगर ज्यादा कुरेदो तो जख्म आँसुओ के साथ बाहर आने लगते हैं, ऐसे ही
एक बाबा हैं.
60
साल के बाबा रामकृपाल, पहले इनका नाम माखनलाल था, बहुत ही
शांत रहते है. जब तक इनके बहुत खास ना हो जाये, यह परिवार या पिछली ज़िन्दगी के बारे में कोई बात नहीं करते, "ऐसा नही है हम यहाँ बहुत खुश है, लेकिन
यहाँ हमें उससे बहुत ज्यादा खुश हैं, जितना अपनो के साथ रहकर थे, यहाँ
हमारा परिवार यह सब घाटो पर सोने वाले लोग है, उनमें
वो जानवर भी शामिल है, जो हमारे साथ सोते है, हम
सब साथ रहते है, और
खुश है,आगे कहते है, क्या
रख्खा है इस दुनिया में, जो थोडे दिन बचे है, वो
कट जायेंगे, मरने के
बाद चार कंधे ही तो चाहिए, वो यहाँ मिल ही जाते है..क्या फर्क पडता है, वो
अपनो के है, या किसी और के..”
कुछ ऐसे है, जो अब अपनो की शक्ल तक नहीं देखना चाहते है, उनसे
अगर उनके अपनो के बारे में पुछो, तो
गुस्से से लाल हो जाते है,
71
साल के बाबा प्रभुशंकर कहते है, कौन
बेटा, कैसा
परिवार, किस बात
का रिश्ता, मेरा कोई नही इस दुनिया में, मै
अकेला आया था अकेला जाऊगा, मुझे किसी की कोई जरूरत नही, मुझे इन
घाटो पर 9 साल हो
गये, अब बचा
टाइम भी यही गुजरेगा..
80 साल के रामानंद ठीक से ना तो बोल सकते है ना ढंग से चल सकते है, अगर आप
इनकी बात समझ पाओ तो आप इनसे बात कर सकते हो, अपनी टुटी-फुटी आवाज में कहते हैं, क्या
करे, घर जाकर, अब इस
उमर में हमे क्या चाहिए, दो वक्त की रोटी मिल जाये, वस काफी
है, अब शरीर
तो साथ देता नहीं, मेहनत करके तो पेट भर नहीं सकते, यहा दो
वक्त की रोटी तो मिल ही जाती है, यहाँ रोज-2 हमें कोई टोकने वाला तो नही है, कम से
कम हम अपनी मरजी के मालिक तो है.
युपी की बरेली के रहने वाले, स्वरुपानंद
कहते हैं, " मैं सत्तर साल का हुँ, मेरा एक
ही बेटा है, घरवाली 10 साल पहले दुनिया छोड गई, मेरे
बेटे के छह बच्चे है, दो बीघा जमीन है, बेटा मजदुरी करके जैसे-तैसे घर चलाता है, मै इस
उमर में कोई काम तो कर नही सकता, बेटे पर बोझ कैसे बनु, ऐसा नही
है वो मुझे चाहता नहीं
है, या मेरी बहु मुझे कुछ कहती है, जब भी
मन करता है चला जाता हुं उनसे मिलने, और जो
पैसे इन घाटो पर लोग मुझे दे जाते है, मै सब उन्हे दे देता हुँ, उसके
लिए अपना परिवार पालना मुश्किल है, मै कैसे इस उम्र में उस पर बोझ बन जाऊ..
हांलाकि हरिद्बार में बडी सख्या में आञ्रम है, और इनमें बडी सख्या में वो बुजुर्ग
रहते है, जो अपनी
ढलती उम्र या खराब स्वास्थ्य के कारण अब हासिए पर आ
चुके है, लोकिन
सभी को आञ्रमो के थोडे कठिन कानुन अच्छे नही लगते,
67
साल के रामानंद कहते है," अगर
हमें इतने ही नियम मानने कि आदत होती तो हम अपने बेटो के साथ ही रह लेते, अब इस
उम्र में हमें आजादी चाहिए, शांति कुंज जैसे बडे आञ्रमो मे तो खाने, सोने, नहाने
यहाँ तक की पुजा का भी टाईम फिक्स है, हम इन
घाटो पर आजादी के लिए है, आञ्रम में जाकर मुझे लगता है, जैसे मै
फिर से अपने बेटे के घर में पहुँच गया हुँ..
कुल मिलाकर बहुत कम लोग ऐसे है, जो
अपनी खुशी से साधु बने है, या बने रहना
चाहते है, अधिकतर को परिस्थितियो ने संत बनने को मजबुर
किया है, इनके जख्म दिखाई इसलिए नही देते, क्योकि
इन्हे इसके साथ जीने की आदत पड चुकी है, और यह किसी के बहुत कुरेदने पर ही, अपना
मुँह खोलते है, वरना यह भगवान की आराधना में ही तल्लीन रहते है, कुल
मिलाकर एक परिवार में रहते हुए, थोडा-थोडा बाप-बेटे दोनो को एडजस्त करना चाहिए, गुस्से
में लिए गये अधिकतर फैसले गलत ही होते है, धैर्य
रख्खे, बेटो को
चाहिए वो यह ना समझे कि वो हमेशा जवान रहने वाले है, आज जिस
अवस्था में उनके माँ बाप है, कल वह भी उस अवस्थ में पहुँचेंगे..
Monday, 14 December 2015
यह उलझे से रिश्ते ,
हर कोई, दूर से कहता
मै हूँ , पास तुम्हारे,
ना कोई राह,
ना कोई मंजिल
ना ख़ुशी, ना कोई गम
ना किसी पे गुस्सा,
ना किसी से प्यार,
कहीं ठहर सी गई ,
जिससे शुरू हुई,
उसी पे , जैसे,
ख़त्म सी हो गई,
इतना उलझा "रोहित"
सीधी सी ज़िन्दगी,
भूल-भुलैया ही बन गई....