Monday 14 December 2015

यह अजीब सी ज़िन्दगी,
यह उलझे से रिश्ते ,
हर कोई, दूर से कहता
मै हूँ , पास तुम्हारे,

ना कोई राह,
ना कोई मंजिल
ना ख़ुशी, ना कोई गम
ना किसी पे गुस्सा,
ना किसी से प्यार,
जैसै यह ज़िन्दगी,
कहीं ठहर सी गई ,
जिससे शुरू हुई,
उसी पे , जैसे,
ख़त्म सी हो गई,
रिश्तो की उलझन मे,
 इतना उलझा "रोहित"
सीधी सी ज़िन्दगी,
भूल-भुलैया ही बन गई....
           ''Rohit Gangwar"